23/11/2025

Dhanbad Times

वंश और समृद्धि की वंदना: कतरासगढ़ राजबाड़ी में मां दुर्गा की शाश्वत आराधना

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धनबाद: झारखंड के कतरासगढ़ स्थित राजबाड़ी में मां दुर्गा की पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक जीवंत परंपरा है। एक ऐसी परंपरा जो वंश, विश्वास और विरासत को एक सूत्र में पिरोती है। यहां हर वर्ष की दुर्गापूजा, एक कलश से शुरू होकर पीढ़ियों की श्रद्धा तक बहती है।

कलश से कथा तक: रीवा से कतरासगढ़ तक की यात्रा

राजघराने के वयोवृद्ध वंशज चंद्रनाथ सिंह बताते हैं, कि उनके पूर्वज मध्यप्रदेश के रीवा स्टेट से मां दुर्गा का पवित्र कलश लेकर पहले गिरिडीह के पालगंज स्टेट आए और फिर कतरासगढ़ पहुंचे। यही कलश आज भी पूजा का केंद्र है। एक प्रतीक जो न केवल देवी की उपस्थिति का, बल्कि वंश की आस्था का भी संवाहक है।

प्रार्थना से शुरू हुई परंपरा

1887 में जब राजमाता उत्तीम कुमारी ने वंश की चिंता में मां दुर्गा की आराधना की, तब उनके पुत्र शक्तिनारायण सिंह का जन्म हुआ। उसी वर्ष से मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की परंपरा शुरू हुई। सादगी में लिपटी श्रद्धा, जिसमें न तामझाम है, न प्रदर्शन, बस समर्पण है।

श्रद्धा का मेला, परंपरा की थाप

महासप्तमी पर नवपत्रिका प्रवेश के साथ माता का पट खुलता है। तीन दिन तक पूजा होती है, जिसमें पशु बलि की परंपरा निभाई जाती है, उसी कटार से, जिससे पहली बार बलि दी गई थी। कोलियरी और ग्रामीण इलाकों से सैकड़ों श्रद्धालु मां के दर्शन को आते हैं। ढाक की थाप, मंत्रों की गूंज और आचार्यों की पूजा विधि इस आयोजन को जीवंत बनाती है।

विजयदशमी की रात: श्रद्धा का समापन नहीं, विस्तार

विसर्जन के बाद राजपरिवार के सभी सदस्य माता लिलोरी के दर्शन के लिए लिलोरी मंदिर जाते हैं। यह यात्रा केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि श्रद्धा की पूर्णता है। एक और अध्याय, जो इस कथा को गहराई देता है।

पूजन की पीढ़ियाँ, संगीत की विरासत

पूजन कार्य सोनारडीह के कोइरीडीह से आए आचार्य मिथलेश तिवारी, अशोक तिवारी, सुरेश तिवारी, धनंजय तिवारी, संतोष तिवारी करते हैं। उनके पूर्वज भी यही सेवा करते थे। झगराही से आए ढाक वादक इस पूजा को सांस्कृतिक जीवंतता प्रदान करते हैं।

17 वीं पीढ़ी और वही श्रद्धा

आज कतरासगढ़ में राजघराने की 17वीं पीढ़ी है, लेकिन मां दुर्गा की पूजा में वही श्रद्धा, वही समर्पण और वही भावनात्मक जुड़ाव आज भी जीवित है। यह पूजा एक वंश की आत्मा है, जो हर वर्ष नवसंजीवनी पाती है।

 

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